जाड़े की धूप.. मो आसिफ़ इक़बाल



दुनिया के सारे इंसान
बच्चे बूढ़े और जवान
देखो कितनी ठंड पड़ी
ठिठुर ठिठुर सब हैं परेशान।।

अब तो एक ही आस है
थोड़े जलावन जो पास है
जला के इसको तापेंगे
फिर तापमान मापेंगे।।

फिर भी ठंड न जाएगी
याद हमारी आएगी
सूरज दादा अब आ भी जाओ
जाड़े की धूप से हमे गर्माओ।।

कितना पीएं गर्म सूप
चाहिए अब जाड़े की धूप
भटक रहे सब निः सहाय
काम न आए गर्म चाय।।

हर तरफ धुआं सा छाया
चारों ओर कुहासा आया
ठंड से सभी का हुआ बुरा हाल
नाक भी हो गए सबके लाल।।

अब रुसा-रूसी छोड़कर
बादलों की छत तोड़कर
लेकर तुम भगवान का रूप
आ जाओ जाड़े की धूप।।

रचयित – मोहम्मद आसिफ इकबाल
विशिष्ठ शिक्षक उर्दू
राजकीय बुनियादी विद्यालय उलाव बेगूसराय बिहार।

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