जाति वर्ण – गिरींद्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha


भिन्न-भिन्न जाति, सम्प्रदाय,
भिन्न-भिन्न वर्ण और समुदाय,
भाषा, राज्य, प्रांत और वतन,
भिन्नता सबमें, पर है एक धरम,
भिन्न-भिन्न भले सबकुछ, सब असमान,
पर एक ही मातृभूमि सबका जन्म-स्थान,
वाटिका में भिन्न-भिन्न सा फल-फूल लगे हों,
तो निस्संदेह उसका सौंदर्य बढ़ जाता है,
भारतभूमि पर भिन्न-भिन्न तरह का सबकुछ,
फिर इस देश का महान सौंदर्य बढ़ जाता है,
अनेकता में एकता की है परम पवित्र संस्कृति,
प्रकृति में सर्वत्र उल्लास, प्रेम, नहीं कोई विकृति,
आर्यावर्त की है यही आन, बान, शान, पहचान,
हम करें देश की संस्कृति का नित निरंतर सम्मान,
जाति-वर्ण केवल है परिचय, है कर्म हमारी पहचान,
उज्ज्वल जिसका कर्म हुआ है, वही मनुज है महान,
जाति-वर्ण भिन्न-भिन्न हो, पर हैं सभी समान,
आत्मवत् सर्वभूतेषु का हम माने वाक्य महान,
यदि कहना चाहूं तो एक वाक्य में इतना कह दूं,
सारे जहां से अच्छा निस्संदेह है हमारा हिन्दुस्तान।
….गिरीन्द्र मोहन झा

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