कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं
बच्चे तो कच्चे माटी के बने होते हैं
जैसा चाहो वैसा रूप बना दो, पर
हम खुद कुम्हार बनते नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहींं।
खेल-खेल में भी सीखते वो,
अनुशासन का पाठ पढ़ते वो,
झूठी बात कभी बोलते नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
बच्चों के मन खाली स्लेट होते,
जो हम कहते, वही वो करते,
रंग खुशी का हम भरते नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
बच्चे जो देखते, वही वो सीखते,
जो हम लिखते, वही वो पढ़ते
उसके मन को हम समझते नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
प्रकृति से सीखते हैं बच्चे,
पर्यावरण को भी हैं समझते,
स्वच्छ माहौल शायद मिलते नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
शोरगुल कक्षा में बच्चे करते
एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते
शिष्टाचार का पाठ हम पढ़ाते नहीं
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
यूँ ही कोई शरारती होता नहीं,
बच्चों को भी ये सब भाता नहीं,
कर्तव्य का पाठ हम पढ़ाते नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
बच्चे हमेशा होते मन के सच्चे,
चेहरे पर मुस्कान दिखते अच्छे,
दुनियादारी की कोई परवाह नहीं,
कौन कहता है बच्चे पढ़ते नहीं।
रीना कुमारी। (शिक्षिका)
प्रा० वि० सिमलवाड़ी पश्चिम टोला
पूर्णियाँ बिहार