किसान
धरती है मेरी माता,
पिता को माना आसमान,
है मेरी यही परंपरा,
है मेरी यही शान I
हाँ मै भी हूँ एक किसान I
भरता हूँ दुनियाँँ का पेट,
चाहे सो जाऊँ मैं भूखा।
रहे न तन पर कपड़ा,
पड़ जाता हूँ धरती पर बेजान,
हाँ मै भी हूँ एक किसान I
नहीं करता क्षण भर आराम,
करता रहता हरदम काम I
सातो दिनों और सातों रात,
होता नहीं कभी भी परेशान,
हाँ मै भी हूँ एक किसान I
ठंडी में ठिठुरता रहता हूँ,
गर्मी में जलता रहता हूँ।
जब बरसात में बादल छाए,
और नीला हो आसमान I
हाँ मै भी हूँ एक किसान I
कर्ज तले दबा रहता हूँ,
मन ही मन घुटता रहता हूँI
नहीं है कोई शौक और अरमान,
हाँ मै भी हूँ एक किसान I
सूर्य प्रकाश
उo मo विo कुबौलीराम
पूसा, समस्तीपुर
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