क्षितिज के पार
हिम वेदना को पिघलाने
नयनो के अश्रुकोश लुटाने
विकल मन को त्राण दिलाने
अन्तर्मन छवि पावन बसाने
आओ चले क्षितिज के पार ।
कुत्सित भाव विचार गलाने
घात प्रतिघात का तपन मिटाने
अंतस घटा तिमिर भगाने
हिय उत्साह उमंग जगाने
आओ चले क्षितिज के पार ।
नव रश्मि नव खाब संजोने
नव किसलय नव पुष्प खिलाने
स्नेह भक्ति अनुराग जगाने
अंतर्मन सुमंगल दीप जलाने
आओ चले क्षितिज के पार ।
नव विहान की प्रभा फैलाने
शुभ संध्या सखि सेज बिछाने
आशाओं के नवदीप जलाने
विश्वास की नई उम्मीद जगाने
आओ चले क्षितिज के पार ।
नव पर को नई उड़ान देने
उजड़ी बगिया पुनः बसाने
पड़ी गांठ को ले सुलझाने
मानवता का शुभ बोध कराने
आओ चले क्षितिज के पार ।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि. कुआड़ी
अररिया, बिहार