लक्ष्य के ही गिर्द-गिरिधर कुमार

Giridhar

Giridhar

तो क्या हुआ?
जो हार गया मैं!
अब भी मैं यहीं खड़ा हूँ,
पूरे दम खम से,
यहीं, यहीं,
लक्ष्य के गिर्द।

हार से अलग,
जीत कहां है,
दो नाम के एक ही
साझे सिक्के…
उल्लास और दुख के
किनारों से अग्रसर यह
लक्ष्यपथ है…

कभी स्याह,
कभी इतनी चमकीली कि,
आँखों में न समाए,
और चलना है बस, ऐसे कि
तुम इन्द्रधनुष हो कोई!
हर एक रंगों से सिक्त,
एक का अलग से कुछ
आग्रह नहीं…

…अब भी, अब भी,
मैं यहीं खड़ा हूँ,
पूरे दम खम से,
यहीं, बस यहीं,
लक्ष्य के गिर्द…!

गिरिधर कुमार शिक्षक

उत्क्रमित मध्य विद्यालय जियामारी, अमदाबाद, कटिहार

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply