लोहार
लोहे पर निर्भर जीवन,
लोहार हूॅं मैं।
कम पैसे में काम करूॅं,
उपकार हूॅं मैं।
विस्मित कर देता जग को,
फनकार हूॅं मैं।
मानसून के संग चलूॅं,
बौछार हूॅं मैं।
जिसने बसा लिया उसका,
संस्कार हूॅं मैं।
चोर उचक्के गुंडे का,
आहार हूॅं मैं।
ताम्र कांस्य लौह युगों के,
औजार हूॅं मैं।
चार युगों से लब्धक शुभ,
आभार हूॅं मैं।
भीड़ लगाता रहता हूॅं,
त्योहार हूॅं मैं।
काम बहुत और पैसे कम,
गमखार हूॅं मैं।
सोम से रवि गतिमान,
लाचार हूॅं मैं।
अकेला “एक अनार सौ,
बीमार”हूॅं मैं!
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय दरवेभदौर
0 Likes
