मैं भारत हूँ
मैं भारत हूँ, सदा रहूँगा, ऐसा ही बतलाऊँगा।
माटी के कण-कण से सबको, अभिनव गुण सिखलाऊँगा।।
पत्ते कहते मैं भारत हूँ, हरा रंग दिखलाऊँगा।
हरित भाव को हिय में लाकर, अनुपम समृद्धि लाऊँगा।।
नदियाँ कहतीं मैं भारत हूँ, निर्मल नीर बहाऊँगी।
सुखद सौम्य आतप जन भरकर, खुशियों से सरसाऊँगी।।
पुस्तक कहती मैं भारत हूँ, ज्ञान रश्मि फैलाऊँगी।
सुप्त हृदय में भाव जगाकर, आगे सदा बढ़ाऊँगी।।
संत कहे नित मैं भारत हूँ, अमिय सुधा बरसाऊँगा।
मधुरिम वाणी से दुनियाॅं में, प्रेमिल भाव जगाऊँगा।।
पक्षी कहते मैं भारत हूँ, नेह भाव दिखलाऊँगा।
मिलकर कदम बढ़ाना सीखो, पाठ यही पढ़वाऊँगा।।
गीता कहती मैं भारत हूँ, कर्मयोग बतलाऊँगी।
सद्कर्मों से कभी न हटना, जीवन सफल बनाऊँगी।।
गुरुवर कहते मैं भारत हूँ, सुन्दर ज्ञान लुटाऊँगा।
शिष्यों को नित ठोक बजाकर, मूरत नया रचाऊँगा।।
कहे विज्ञान मैं भारत हूँ, ताकत सही बताऊँगा।
अपने विवेक से हरपल मैं, जग में नाम कमाऊँगा।।
कहे भूगोल मैं भारत हूँ, सही जगह ले जाऊँगा।
सोच सदा तुम ऊँचा रखना, हरदम तुझको पाऊँगा।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार