हर-पल मर्यादा में रहना – गीत
शब्दों की कर हेराफेरी, नित्य नया कुछ चाहूँ कहना।
मन को अपने समझाता हूॅं, हर-पल मर्यादा में रहना।।
अक्सर देखा है दुनिया में, अहम भाव को पलते मैंने।
सृजनकार का तमगा लेकर, निज भाषा को छलते मैंने।।
अपने शब्दों से बस चाहूँ, मिलकर सबके रग में बहना।
मन को अपने समझाता हूॅं, हर-पल मर्यादा में रहना।।०१।।
कठिन शब्द से रचता कोई, गरिमा अपनी दिखलाने को।
भाषायी गठबंधन करते, सबसे ताली बजवाने को।।
मैं मूरख बस उलझा रहता, सरल शब्द का लेकर गहना।
मन को अपने समझाता हूॅं, हर-पल मर्यादा में रहना।।०२।।
नहीं लेखनी चलती मेरी, मिलावट भरी बाजारों में।
हाशिए पर रह जाता हूँ, करते जगमग किरदारों में।।
सत्य-प्रेम का राही बनकर, सीख लिया मैं सब-कुछ सहना।
मन को अपने समझाता हूॅं, हर-पल मर्यादा में रहना।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
