मेरे गुरु-स्नेहलता द्विवेदी आर्या

मेरे गुरु

वो हैं गुरु जो कुछ भी सिखाते हैं रात दिन,
मेरे ही मन की प्यास बुझाते हैं रात दिन।

सीखा है अगर कुछ भी कायनात ने कभी,
वो तो गुरु हैं जिसने सिखाया है रात दिन।

वो ज्ञान और तहजीब का ऐसा खुदा की बस,
सारे जहाँ की बात बताते हैं रात दिन।

इस जिस्म में भी इल्म को बसा दिया कि बस,
इस जिस्म को मनुष्य बनाते हैं रात दिन।

माँ बाप ने है जिस्म को पैदा किया कि लता,
इस जिस्म को जहाँ का बनाते हैं रात दिन।

मेरी इल्म की दौलत के हैं वो राह व सुखन,
इन दौलतों को मैं जो लुटाती हूँ रात दिन।

जब राह में ही रात हो चली हो जिंदगी,
उस रात में चिराग जलाते वो रात दिन।

मैं जब भी लूँ यूँ झपकी गुरुरे सब्र की,
मेरी रूह में दिये को जलाते वो रात दिन।

मैं शिष्या हूँ बस उनकी उन्हें कोटिशः नमन,
मेरी ही आत्मा को जगाते वो रात दिन।

स्नेहलता द्विवेदी “आर्या”
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार

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