रूप घनाक्षरी छंद- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

गुरू को समर्पित बागानों में फल-फूल, खेतों बीच कंद-मूल, सुमन को बसंत में, ‘रवि’ महकाता कौन! सूरज कहां से आता ,रोज रात कहाँ जाता, ऊँचा नीला आसमान, तारे चमकाता कौन?…

पावन होली आई है- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

विधा: गीत(१६-१४) आओ स्नेहिल रंग उड़ाओ, पावन होली आई है। बच्चे बूढ़े नर- नारी पर, कैसी मस्ती छाई है।। सुंदर है बच्चों की टोली, सबके कर पिचकारी है। गली- गली…

रंगोत्सव जीवन राग- सुरेश कुमार गौरव

प्रियवर! रंगोत्सव आई है सुख में भी हंसना दुख को भूल जाना जी भरके जीवन तराने गाना रंगोली बन खुद को बहलाना प्रियवर! रंगोत्सव आई है जीवन राग सुनाने आई…

नारी शक्ति- जयकृष्णा पासवान

चंडी की अवतार तू अबला, जग है तेरे रखवाले। रुप धारण की आन पड़ी है, अब तेरे किस्मत उजियारे।। “धधक रहा ज्वाला मन की” इसको तुम प्रतिकार करो। झुको नहीं,रूको…

गुरु को नमन-जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

पूरब में देख लाली, झूमती है डाली डाली, धरती आबाद होती, सूरज किरण से। बसंत बहार देख, फूलों की कतार देख, तितली ऋंगार कर, पूछती मदन से। जंगलों में कंद-मूल,…

पहली होली-संजीव प्रियदर्शी

शादी के उपरान्त फाग में, मैं पहुँचा प्रथम ससुराल। जूता पतलून थे विदेशी, सिर हिप्पी कट बाल। ससुराल पहुंचते साली ने मधुर मुस्कान मुस्काई। हाथ पकड़ कर खींची मुझको फिर…