परिवार
नन्हे मुन्ने मधुर मधुप गुंजन
बड़े बुजुर्ग बरगद शीतल छाया
भाई भाई का साथ निभाया
बहनो ने जब हाथ बँटाया
मात पिता का संबल पाकर
निखरित प्रमुदित होता परिवार ।
सुख दुःख दो तीरो संग
हर्ष विषाद के गीतों संग
हर उलझन को सुलझाया
तपन तिमिर दूर हटाया
स्वर्णिम आश प्रभा दिखाकर
प्रगति पथ बढता परिवार ।
हर मन समाहित द्वन्द्व भाव
संबंधों मे जब पड़ा खटास
विषमता का विष बेल पले
संकीर्णता दंभ द्वेष बढे
सरस सुगम संकल्प गहाकर
अटूट विश्वास जगाता परिवार ।
मात पिता की कड़वी बोली
जैसे कड़वी पकी निबोली
कर आत्मसात हो चरित्र निर्माण
पाता आरोग्य चतुर सुजान
समन्वय संस्कृति का आधार
भाव एकत्व दर्शाता परिवार ।
हँसी ठिठोली संग संग
आनंदित जीवन उपवन
एक दूजे का त्याग समर्पण
सुरभित तन अन्तर्मन
शुभ संस्कार मलय बहाकर
ऐश्वर्य सौरभ लुटाता परिवार ।
भौतिकवादी संस्कृति कोरी
तथापि संबंध नही अधूरी
मर्यादित पावन पथ चलकर
मुखरित हो रिश्तों की डोरी
परस्पर प्रेम विश्वास जगाकर
स्नेहिल बंधन बांधता परिवार ।
यहाँ सीखते नैतिक शिक्षा
पाते हर पल सद्भाव की दीक्षा
भूलों का होता परिमार्जन
सदकर्मो का होता अभिनंदन
जीवन मूल्यों का यही धरोहर
संजोये फूलता फलता परिवार ।
दिलीप कुमार गुप्त