प्रकृति
हो व्याकुल मन की;
व्यथित क्षुधा तुम,
अमृत तुल्य;
नीर सुधा तुम।।
हे प्रकृति रुपी;
ममता मयी,
तू सदा रहे कालजयी,
तू गोद में लिए अपने खड़ी,
हे प्रकृति रुपी ममता मयी।।
विकल नजरों से देखता,
प्रदूषण कर तुझमें फेंकता,
तेरी छांव को खोजता,
चाहकर भी न रोकता।।
ले आलिंगन कर ;
अपनी गोद में बिठा,
हे प्रकृति माँ;
हूँ मैं खुद से रुठा,
पाषाण रुपी कंक्रीट जाल से;
मुझको तू निकाल माँ,
कर हाथ जोड़ करबद्ध निवेदन,
मुझको तू संभाल माँ,
मुझको तू संभाल माँ।।
प्रियंका प्रिया
श्री महंत हरिहरदास उच्च विद्यालय पूनाडीह पटना बिहार
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