धनतेरस।
रोला छंद ।
पावन कार्तिक मास,स्वर्ग से सुंदर भाता।
त्रयोदशी का योग,कृष्ण पक्ष अति सुहाता।
प्रकट हुए धनदेव, ग्रंथ आदिम कहते हैं।
देते शुभ सम्मान,सदा साधक रहते हैं।।
धनतेरस के नाम,करें जो पूजन प्राणी।
खुलते भाग्य कपाट,बहे मुख निर्मल वाणी।।
धनवंतरि का कलश,अमृत सह फिर आया है।
सारा सकल समाज, नाचते हरषाया है।।
धन वर्धन के नाम,धरा पर भीड़ लगी है।
कंजूसों में आज, लालसा खास जगी है।।
आए हैं बाजार, उन्हें चम्मच भी भारी।
कहते हैं ‘अनजान’,करें मत इनसे यारी।।
कहते सकल जहान,खोल जहॅं गाॅंठ पड़ी है।
जिसके पास विवेक, संपदा आज झड़ी है।।
धनवंतरि के जन्म,दिवस को सफल बनाऍं।
खोया वैभव आज,पुनः हम वापस पाऍं।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
पंडारक पटना बिहार
