रोको मत!
टोको मत!
यहां खुद ही
चढ़नी पड़ती हैं
सारी सीढियाँ…
कोई क्यों बोले कुछ,
कोई क्यों टोके कुछ,
मैं कहता हूँ हजार बार
की महज तमाशों का
कितना मोल है,
कितने मायने हैं,
तुम्हारी हमदर्दी के…
और मैं
किसी का मजाक बनाना नहीं चाहता!
अपना भी नहीं…
बस मुझे चलने दो,
बेखौफ, बेफिक्र,
जहां अधिक परवाह नहीं है
किसी की,
न तुम्हारी,
न जरूरत से अधिक खुद की…
बस मैं
और मेरी मंजिल…
और फलक तो बस यही है,
जो पसरा है…
जहां तक दिखता है क्षितिज,
जहां बहुत चलना बाकी है अभी…
चलना, गिरना, उठना फिर, कभी लड़खड़ाना,
इन अशेष सी यात्राओं में
ये सब हजार बातें
होनी हैं अभी?
और फिर भी तुम???
रोको मत!
टोको मत…!
गिरिधर कुमार शिक्षक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय जियामारी
अमदाबाद, कटिहार
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