दीपावली -रुचिका

दीपावली

दीपों की जगमग अवलि,
अँधेरों से देखो कैसे लड़ रही है
अमावस के गहन तिमिर को दूरकर
प्रकाश हर जगह बस रही है।

एक दीया प्रेम और विश्वास का
चलो मिलकर हम जलाएं
झूठी अना से दूर रहकर
सच्ची भावनाएं वह समझ पाए।

घर के मुंडेरों से लेकर
तुलसी के चौरा तक
जगमग जगमग रोशनी की कतारें
आह्लादित है मन
जोश मन में पाँव पसारे।

चलो एक दीया हौसलों का
हर मन में हम मिलकर जलाएं।
बुझे हुए हौसलों को
जगाकर मन में जोश भर जाएं।

एक दीया प्रेम का निरन्तर जलता रहे,
ईर्ष्या,द्वेष के घने तिमिर को चीरकर
सद्भावना की रोशनी से
वह धरा को आलोकित करें।

चलो एक दीया सहानुभूति की
हम कुछ ऐसे जलाएं।
दर्द भले बाँट न सकें
मुस्कान होठो पर लाये।

यह दीपावली हो सबसे अलग,
सिर्फ घर ही नही रोशन करें
मन को भी रोशन कर जाए।

रूचिका
प्राथमिक विद्यालय कुरमौली गुठनी सिवान बिहार

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