शिक्षक
पापा जब आप चले गए थे
मै तो बस छोटा सा बालक था
मां भी तो थी आपसे छोटी
बद से बदतर हालत था
क्या करूं? कहां जाऊं?
न सोचने का ताकत था
मां ने जो भी समझाई
वो प्रथम गुरु, मैं शिष्य था
उसको पाकर, आगे चलकर
रिश्तेदारों के पास रहना था
हर संबंधों ने रिश्ता पढ़ाया
वो सब शिक्षक और मैं पाठक था
बड़ा हुआ, स्कूल गया
अब तो पढ़ते जाना था
गिनती हो या जोड़ घटाव
ये भी तो शिक्षक से जाना था
परीक्षा पास की वर्ग की
अब जिंदगी की परीक्षा में जाना था
जो मिले उस सबने सिखलाई
दर्द, सुख, दुख यही तो पैमाना था
हर चोट और थपेड़े से भी
गुण हमको सिखलाना था
जब हो मुलाकात उससे भी तो
सर मरोड़ पांव के नीचे दबाना था
वो सब जो भी मिले, दिए सुख या दुख
सबसे बस सीखकर, आगे बढ़ते जाना था
कैसे कहूं? सिर्फ क्लास के शिक्षक
हर कोई को तो सिखलाना था
जिन जिन से सीखा
सिख सिख गुणों का अंबार लगाना था
शत शत नमन उम्र के छोटे बड़े सारे शिक्षक
आप सबने ही तो हमें जीना सिखाया था
आज लोग कहते हैं मैने सब पाया
ये सब आप सबको समर्पित करना था
पापा मां आप चले गए
पर इन शिक्षक ने मुझे पहचाना था।
आज जो छुआ हूं जिंदगी की ऊंचाई को
वो मां तेरे त्याग और समर्थन से होना था!
बेशक शिक्षक ने मुझे शिक्षित कराया था,
पर मां तो गुरु बन, जीवन का सच्चा ज्ञान सिखाया था।।
आंचल शरण
बायसी पूर्णिया बिहार