सुंदर सूभग विहान
हे रवि आ जाओ तुम नभ में,
जीवन में मकर प्रयाण लिए।
ठंड की वेला से मुक्ति का,
सुंदर सुभग विहान लिए।
शुभ उत्तरायण शुभ मंगल हो,
अब मोक्ष का अद्भुत गान लिए।
संक्रांति मकर की शुभ शुभ है,
जीवन का मंगल गान लिए।
दे देना प्रखर प्रकाश अमिट
मघुमाय जीवन रसपान लिए।
हे भानु निकलो अब नव पथ पर,
तुम शौर्य युक्ति यशगान लिए।
कृषक प्रफुल्लित रास रग,
ले अन्न भी बहुविधि पास लिए।
भास्कर की रश्मि को नमन करे,
स्नान गंग हैं साथ लिए।
भीष्म तेरा पथ देख रहे थे
मोक्ष कृष्ण का साथ लिए।
प्रकाशित जीवन तन मन हो,
दिवाकर आशीष साथ लिए।
कहीं बिहू की धुनी नृत्य करे,
कहीं पोंगल का रसपान किए।
चूड़ा दही अमृत पान करे,
शक्कर तिलकुट साथ लिए।
लोहड़ी मिल साथ जलाया है,
शुभ मंगल गान समाज लिए।
स्नान दान बहुविधि करते,
कोटि नमन रवि प्राण दिए।
डॉ स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या ‘