वो शाम सुहानी जाते जाते, कर गई रूहानी जाते जाते। संदूक में दबा कर रखा था, जिन जज़बातों को हमने कभी, न जाने कैसे खुल गई जाते जाते। कितना कुछ…
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गुड़िया – अदिती भुषण
आओ सब मिल खेले खेल मैं इक गुड़िया, बच्चों के मन को भाती सुंदरता मेरी प्यारी प्यारी मैं कई रूप रंगों में आती। तुम जैसा मुझे बनाओगे, वैसा मैं बन…
मैं एक अंतर्मुखी – अदिती भुषण
हांं, हूं मैं एक अंतर्मुखी, रहती, हूं मैं स्वयं में सिमटी, कभी हूं मैं कविता मन के तरानों की, कभी हूं मैं आशा हौसलों के उड़ानों की, तो कभी हूं…