अनुराग समर्पित धवल अन्तःकरण हो जागृत उपहास किंचित न हो प्रस्फुटित मिथ्या आचार सदा विसर्जित मन कर्म वाणी हो सदा सुसज्जित। उर मैत्री भाव हो स्पंदित अश्रु प्रेम नैनन हो…
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