ह्रदय की पुकार पर , बढ़े चलो -बढ़े चलो । मन कभी विचलित भी हो , तुम भटक गए पथिक भी हो । सुनो हमेशा अपनी पुकार पर , रुको…
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कर्त्तव्य के आलोक पथ पर – अमरनाथ त्रिवेदी
कर्त्तव्य के आलोक पथ पर , कुछ दीया मैं भी जला दूँ । सज दूँ इसे अवली बनाकर , प्रेमपथ में भी सजा दूँ । नेह सारे मिल गए ,…
चाहत – अमरनाथ त्रिवेदी
जीवन मे प्रेम का आधार हो , इसमें न छल व्यापार हो । न कालिमा -सी बात हो , न, छुपा रुस्तम आगाज़ हो । चरण पड़े जहाँ- जहाँ ,…
फैसला- अमरनाथ त्रिवेदी
छुपे हुए व्योम के पीछे , क्या तुम तारे ढूँढ रहे हो ? या उजास के उजले चादर की , तुम सपने बुन रहे हो । क्या अन्तस् का यह…
प्रेम संदेश – अमरनाथ त्रिवेदी
प्रेम सदा अपनाओ जग में , प्रेम सदा अपनाओ रे । लेकर कुछ नही जाना वन्दे , प्रेम सदा बरसाओ रे । आना -जाना लगा यहाँ पर , कोई नहीं…
इंसानियत-अमरनाथ त्रिवेदी
वफ़ा की सर्वत्र खुशबू मिले , सरल ह्रदय – सरल मिले । न जहाँ कोई बेगानापन , जहाँ न हो उजड़ा चमन । सभी मिले – सभी खिले , हर…
आह्वान – अमरनाथ त्रिवेदी
मुँह में राम दिल मे छुरी , लेकर न कभी जिया करो । ऐसा न कभी किया करो । । मानव मन की यह शान नहीं , यह दानवता की…
नववर्ष- अमरनाथ त्रिवेदी
मानो पुराने वर्ष का , सूर्यास्त है अब हो रहा । नवोदित नववर्ष यह , सूर्योदय -सा अब भा रहा । विश्वास का सम्बल समाहित , जब ह्रदय में छा…
कर्म का रहस्य -अमरनाथ त्रिवेदी
सम्बल तप -त्याग का , चला रहा संसार को । कर्मपथ निष्कंटक नही, बतला रहा निज सार को । है दिग्भ्रमित होता मनुज , बुद्धिबल छीजती है जहाँ । संदर्भ…
प्रकृति का तांडव-अमरनाथ त्रिवेदी
सांसारिक क्लेश अब, नस -नस में चुभने लगी है । सत्प्रयोजनों से नाता , ज्यों छूटने लगी है । हमीं ने किया है , ऐसा आयोजन । हमी से फैली…