हुआ सबेरा जाग उठा जीवन प्रभात! धरा की दूब पर मोती स्वरुप ओस हैं पड़े मंद-मंद वयार ताजगी के फूल खिले हैं अड़ें ओस की बूंदें धरती का करे शीतल…
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आओ प्रकृति बचाएँ-विनय कुमार
आओ प्रकृति बचायें प्रकृति ने ही तो हमें संवारा है पर हमने क्यूँ इसे बिगाड़ा है? इसकी हर रचना हमें भाती है यही तो हमारी सच्ची थाती है। संकल्प…