हम शिक्षक धीरे धीरे मैं गढ़ती हूँ, घर घरौंदा आदिम सब, जाने जैसे कैसे लिखती वर्ण व आख़र आखिर सब। कोमल निर्मल मन पर लिखती खेल खिलौने बाकिर सब,…
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मेरी बेटियां -डॉ स्नेहलता द्विवेदी
मेरी बेटियां! मेरी प्रतिरूप, मैं बसती हूं उनमें, अंतस्त बिल्कुल अंदर, आद्यो पांत सर्वांग, प्राण वायु की तरह। मेरी बेटियां! मुस्कुराहटों में, आशाओं में, बातों में, आख्यानों में, संवाद में,…