गलतियों से सुधरने को, जीवन में कुछ बनने को, जिंदगी से संघर्ष करने को, यूं खाली ना बैठे रहने को, प्यार से या दुत्कार से मुझको अब ये कौन कहे?…
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मां की विवशता- दया शंकर गुप्ता
आइए करें एक विचार, क्या मिला है अब भी, माताओं को उचित सत्कार? जेहन में आता है घटना बार बार, जा रहा था बस से मै बाजार, अचानक एक नवजात…
वहीं है कबीर – दया शंकर गुप्ता
जो निंदक को पास बिठाता है, जो अपना घर स्वयं जलाता है, जो पत्थर को पूज्य बताता है, जो खुदा को बहरा बुलाता है, इस अंधविश्वासी समाज में भी, जिसका…