पगडंडी पर भागे ऐसे – रामपाल प्रसाद सिंह अनजान

पगडंडी पर भागे ऐसे, बालक सुलभ सलोने हैं। नन्हीं-नन्हे साथ-साथ हैं, अनुभव नए पिरोने हैं। पगडंडी भी स्वागत करने, हरियाली के बीच खड़ी खड़ी फसल ललकार रही है, शक्ति और…

शरद पूर्णिमा, रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

विधाता छंदधारित मुक्तक शरद पूर्णिमा कहीं संगम कहीं तीरथ, धरा पर पुण्य बहते हैं, मगर जो आज देखेंगे, कहेंगे व्यर्थ कहते हैं। जहाॅं शंकर छुपा कर तन, किए श्रृंगार गोपी…

बहती गंगा-सी पुण्यधार रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

पद्धरी छंद सम-मात्रिक छंद, 16 मात्राएँ आरंभ द्विकल से, पदांत Sl अनिवार्य।   मां सिद्धिदायिनी दिव्य भाल। दिखते हैं सागर से विशाल।। कर अभ्यागत की पूर्ण आस। भर दें संस्कारित…

वंदनवार सजे शारदा – कुंडलिया छंद – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

पेड़ लगा मां के नाम से, होंगे जग में नाम। उनके ही नेपथ्य में, पाना चिर विश्राम।। पाना चिर विश्राम, जगत में स्वर्ग मिलेगा। श्रम सुंदर तालाब के, पंक में…

अनजान- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

सुबह सबेरे अनजान मुक्तक-मात्राभार-5-15 सभ्यता के परम शिखर पर, गुंजित संचित है एक नाम, हे प्रभु चैतन्य परमात्मा, आदर्श पर्याय तू राम। भवदीय लकीर खींची जो, सभ्यता पूर्ण समाज की..,…