घर की ओर लौटता आदमी होता नहीं कभी खाली हाथ हथेलियों की लकीरों संग लौटती हैं अक्सर उसके अभिलाषाएं, उम्मीद, सुकून और थोड़ी निराशा घर लौटते उसके लकदक कदम छोड़ते…
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रोटी और चाँद-शिल्पी
प्रेम है राजू को केवल रोटी और चाँद से रोटी जो मिटाती है भूख उसकी देती है उसे नींद, संतोष आकाश भर चाँद जो बढ़ाता है भूख उसकी मिटाता है…