बहरहाल अर्ध हूँ मैं मेरे शून्य का कुछ प्रतिशत मृत्यु के द्वार पर है खड़ा शेष बाट जोह रहा इसके आमंत्रण की मेरे भीतर के पल्लवित ‘स्वंय’ ने आकांक्षा रखी…
Tag: शिल्पी
दूर तक चलते हुए -शिल्पी
घर की ओर लौटता आदमी होता नहीं कभी खाली हाथ हथेलियों की लकीरों संग लौटती हैं अक्सर उसके अभिलाषाएं, उम्मीद, सुकून और थोड़ी निराशा घर लौटते उसके लकदक कदम छोड़ते…
रोटी और चाँद-शिल्पी
प्रेम है राजू को केवल रोटी और चाँद से रोटी जो मिटाती है भूख उसकी देती है उसे नींद, संतोष आकाश भर चाँद जो बढ़ाता है भूख उसकी मिटाता है…