हिंदी मैं और मेरी हिंदी दर्द को कहाँ बिन हिंदी कह सकूँगी !! इसकी न हुई तो तूम्हारी क्या हो सकूँगी ! हिन्दी जैसे अधिकार है मेरा, मेरे हृदय में…
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हर सुबह-विजय सिंह “नीलकण्ठ”
हर सुबह अरुण सी आभा लिए सूरज निकलता हर सुबह कलियाँ भी मुस्काती हुई खिल जाती है हर सुबह। चिड़ियाँ खुशी में झूम कर नाचा करती हर सुबह पशुजात…