१२२-१२२-१२२-१२२ उदासी छुपाकर जिए जा रहा हूँ। तभी तो लबों को सिए जा रहा हूँ।। निगाहें जिन्हें ढूँढती है हमेशा उन्हें बेनजर अब किए जा रहा हूँ।। उधारी चुकाना…
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ग़ज़ल
ग़ज़ल जब हम अपने पर आए वो भी अपने घर आए। उनकी भोली सूरत पर पता नहीं क्यों मर आए। पछुआ हवा के झोंकों पर अदबी विरासत धर आए। चैन…