प्रकृति प्रकृति की प्रवृत्ति आदिकाल से ही निश्छल सहज और सौम्य रही है करती रही है चिरकाल से सबकी तृष्णाओं को तृप्त प्रवाहित होती रही है सदा स्थूल जगत में…
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प्रकृति-प्रियंका प्रिया
प्रकृति हो व्याकुल मन की; व्यथित क्षुधा तुम, अमृत तुल्य; नीर सुधा तुम।। हे प्रकृति रुपी; ममता मयी, तू सदा रहे कालजयी, तू गोद में लिए अपने खड़ी, हे प्रकृति…