वंदनवार सजे शारदा
चतुर्थ दिन छाया शुभ जग में,कुष्मांडा तेरी जय हो।
नर-नारी निर्भय नाचत है,हृदय-सिंधु पावनमय हो।।
लीला तेरी अद्भुत माते,बोल शब्द गूॅंगे मढ़ते।
बहरे से संवाद बनाती,लॅंगड़े तो पर्वत चढ़ते।।
अंधे को आलोक सुभाषित,पापी में भारी भय हो।
नर-नारी निर्भय नाचत है,हृदय-सिंधु पावनमय हो।।
बंदनवार सजे पग-पग पर,हृदय-हृदय अनुराग जगे।
वेद पुराण धर्म ग्रंथों के, शब्द-शब्द लग रहे सगे।।
सदियों से उपकार किए माॅं,आगे भी ऐसा तय हो।
नर-नारी निर्भय नाचत है,हृदय-सिंधु पावनमय हो।।
प्रथम शैलजा माता आई,ब्रह्मचारिणी के आगे।
चंद्रघंटा की अनुगामी तू,तेरे आलय शीतल लागे।।
अखियाॅं निर्निमेष जागी हैं,मिले पावित्र्य निश्चय हो।
नर-नारी निर्भय नाचत है,हृदय-सिंधु पावनमय हो।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
