याचना
प्रवृत्ति आरोह सदज्ञान की
निवृत्ति दुःख द्वन्द्व दुर्भाव की
अन्तस तिमिर का हो उन्मूलन
संस्कृति सुवासित सद्भाव की।
कामना यही तुमसे सद्गुरु
भाव कृतज्ञता का हो ज्ञापन
अपकार कभी स्वप्न में भी न हो
उपकार में जीवन का लय हो।
घात प्रतिघात तपन मिटे
सदचिंतन सत्कर्म करें
अभिप्रेरित हों सदपुरूषों से
जीवन सरिता निर्मल नीर बहे।
हैं अनन्त उपकार आपके
निश्छल मन मंदिर मिला
भूलें अगणित हुई हमसे
हे, दयानिधे क्षमा कर हमें।
अद्भुत! यह सृष्टि आपकी
सर्वत्र व्याप्त माया तुम्हारी
याचना स्वतंत्र भक्ति हे गुरुवर
फिर न आऊँ इस मोह नगरी।
दिलीप कुमार गुप्ता
म. वि. कुआड़ी अररिया
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