अतुल्य टीका- सुरेश कुमार गौरव

suresh kumar gaurav

सदियों पूर्व की गई अपने यहां
“टीकाओं” की अनूठी शुरुआत
एक से बढ़कर एक हुए विद्वजन
किए अद्भुत संस्कृति की शुरुआत।

अपने देश की कई परंपराएं भी हैं
बेहद अर्थपूर्ण अनूठी और अमूल्य
श्रृंगार, प्रेम,वीरता, वात्सल्य भाव
जनमानस मानते इन्हें पूर्ण अतुल्य।

कभी भाई-बहनों के बीच रिश्तों की
निशानी बनता ये ‘पवित्र म़ंगल टीका’
बहनें अपने भाईयों के मस्तक पर
लगाती है ये अति ‘शुभ मंगल टीका’।

वर और वधू के बीच गठबंधन की
पहचान भी है ये खास ‘भव्य टीका’
भारतीय नारी के श्रृंगार रुप में भी
सजती है खूब माथे पर ‘सुहाग टीका’।

युद्धभूमि में जरुर मिले विजयश्री
तब कहलाती ये ‘विजयी टीका’
कई शुभ मांगलिक कार्यों में भी
लगती है ये शुभ ‘मंगल टीका’।

सभी सृजित रचनाओं के लिए
नाम पाती तब ये ‘रचना टीका’
बिना कोई टीका-टिप्पणी के
रचना को नहीं मिलती सार्थकता
इसीलिए यह अद्भुत ‘टीका’
रुप ले लेता तब यह व्यापकता।

जब आती है, कोई वैश्विक मारी
असाधारण रोग जनित बीमारी
तब कहलाती है यह,संरक्षक ‘टीका’
कई रोगों में लगती है ‘जीवन टीका’।

टीका भारतीय संस्कृति की निशानी है
जारी रहे ये परंपरा, नहीं इसे मिटानी है
छिपी हुई हैं इसमें खूब मान और मर्यादा
छिपे हुए गुण हैं इनमें बहुत ही ज्यादा।

सदियों पूर्व की गई अपने यहां
“टीकाओं” की अनूठी शुरुआत
एक से बढ़कर एक हुए विद्वजन
किए अद्भुत संस्कृति की शुरुआत।

सुरेश कुमार गौरव,स्नातक कला शिक्षक, उमवि रसलपुर, पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक

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