अनजान- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

सुबह सबेरे
अनजान
मुक्तक-मात्राभार-5-15

सभ्यता के परम शिखर पर,
गुंजित संचित है एक नाम,

हे प्रभु चैतन्य परमात्मा,
आदर्श पर्याय तू राम।

भवदीय लकीर खींची जो,
सभ्यता पूर्ण समाज की..,

हे अनजान संभाल इसे,
लेंगे इनसे सदियों काम।।

गुरुदेवाय नमः-सर्व देवाय नमः
चरणार्पित
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’

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