आत्म शासन ही अनुशासन ,
यह पल -पल हमे बताता है ।
सड़क हो या अन्य कोई जगह ,
मर्यादा में रहना हमे सिखाता है ।
हम क्या सोचें ; हम क्या बोलें
तन – मन की मर्यादा न तोड़ें ।
जीवन मे सुरभि भरता यह ,
कभी आत्मसंयम को न छोड़ें ।
अनुशासन से सबकुछ है चलता ,
रवि गगन में है तपता ।
इसके बिना न जीवन है ,
संसार इसी से है चलता ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम हुए ,
जो अनुशासन के धाम हुए ।
अपने कर्मों के बल पर ही ,
जग में है उनके नाम हुए ।
सोचें ; अनुशासन न रहने पर ,
क्या मानवता रह पाएगी ?
खंडित होगा सब न्याय – पथ ,
सर्वत्र अराजकता छाएगी ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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