भारतीय किसान जाड़ा,गर्मी,बरसात सभी मौसमों की मार झेलते हुए ,फसलों के नुक़सान का भी दर्द झेलते हुए सदा अन्नदाता के रुप में तत्पर रहते हैं इन पर केन्द्रित हमारी ये कविता प्रस्तुत है। जय किसान जय अन्नदाता।
अन्नदाता का धरा पर मान होना चाहिए
जाड़ा-गर्मी चाहे या बरसात का हो मौसम’
कभी न थकते कभी न रुकते, करते रहते,
धरती पुत्र का सदा सम्मान होना चाहिए!
फसल सूखने की मार,कभी बाढ़ की दहाड़,
खेतों की रखवाली पर ही देते ये सदा ध्यान,
ये न होते तो हमें नहीं मिलता जीवन प्राण,
अन्नदाता के लिए कुछ अधिमान होने चाहिए!
तपती धूप हो चाहे जेठ की कड़क दुपहरिया,
ठंढ़ में ओले पड़ते और असमय बर्षा की मार,
फिर भी सीना ठोककर डटे रहते ये खेतों में,
इनके धैर्य और साहस का सम्मान होना चाहिए!
कभी आंखों में आंसू, खून-पसीने की मेहनत,
टकटकी लगाए ये बाट जोहते प्रकृति की ओर,
प्रकृति की मार तो कभी लागत पर भी आफत,
व्यवस्था पोषकों का इन पर ध्यान होना चाहिए!
कड़ी मेहनत और लगन के पर्याय हैं अन्नदाता!
सदा प्रकृति की मार को झेलते हैं ये अन्नदाता!
अन्नदाता का धरा पर सदा मान होना चाहिए!
इस धरती पुत्र पर सदा अभिमान होना चाहिए!!
@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक, पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
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