महीनों के बाद मिला
ये फल मेहनत का,
हरा-भरा खेत देख, हँसता किसान है।
बाँध और क्यारियों में
लबालब पानी भरा,
धानी सी चुनर ओढ़े, लह-लह धान है।
पसीने की बूंदे उगी
धरती में सोना बन,
चारों ओर फसलों से, भरे खलिहान हैं।
बच्चों की पढ़ाई होगी,
बेटी की सगाई होगी,
सदियों से दबे पूरे होंगे अरमान हैं।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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