वीरों की इस भूमि पर, गूँज रही शौर्य हुंकार,
शान से बलिदानियों ने, लिखे नये संस्कार।
भगत, सुखदेव, राजगुरु, थे अद्भुत रणवीर,
फाँसी के फंदे को, हँस पहना जैसे शूर वीर।
नेता, लाल-बाल-पाल, बोस यहाँ, आग बनी ज्वाला,
मंगल, खुदीराम, अशफाक, वीरों की उजियाला।
रानी झाँसी की तलवार, सिंहनाद जब करती,
कंपित हो अंग्रेजों की, सत्ता सारी डरती।
रामप्रसाद, बिस्मिल महान, क्रांति की पहचान,
निडर चंद्रशेखर से थर-थर काँपा था हिंदुस्तान।
गाँधी, तिलक, नेहरू सभी, सत्य-पथ के धारी,
गूँज उठे थे नर-नारी, बन क्रांति-भू के अवतारी।
जयप्रकाश की हुंकार से, काँप उठी दीवारें,
वीर सुभाष की गर्जना से, हिल उठीं सरकारें।
शहादत की इस माटी में, जन्में लाखों सच्चे वीर,
रक्त से जिनके खिल उठे, स्वर्णिम नव भारत के वीर।
नमन तुम्हें, ओ महावीर! अमर रहे बलिदान,
हर पीढ़ी गाएगी गाथा, तेरा पावन गान।
सुरेश कुमार गौरव
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)