अरमान – मनु रमण चेतना

Manu Raman Chetna

है दिल से यही अरमान मेरी,
मैं कुछ करके दिखला जाऊं।
आशाहीन मानव के घर,
उम्मीद के दीप जला आऊं।

अमीरों के संग सुख -दुख में ,
सब साथ खुशी से देते हैं।
अब दीन- हीन के दुख- सुख में,
मदद की हाथ बढ़ा आऊं।

जो खुद को अबला कहती है,
हर पल घुट-घुट कर जीती है।
उनको शक्ति का भान करा ,
नवजीवन जोत जला पाऊं ।

बच्चे जो अक्ल के कच्चे हैं,
पर मन से मानो अच्छे हैं।
उन बाल मन के हृदयों में,
शिक्षा का अलख जगा आऊं।

बाल श्रम और बाल विवाह,
बेटा-बेटी में भेदभाव।
शिक्षा रूपी तलवार से मैं ,
इन कुरीतियों को मिटा जाऊं।

दुराचार कर रहा प्रहार,
जिससे मच रहा है हाहाकार।
मैं सदाचार का पुष्प खिला,
दुनियां को स्वर्ग बना जाऊं।

काम ,क्रोध, मद ,लोभ, मोह,
ईर्ष्या से मानव मन है भरा।
सत्संग, ध्यान, गुरूसेवा से,
मन को मैं पावन कर जाऊं।

यह ‘मेरा’ और वह ‘मेरा’ से,
मन नफरत फैलाता है।
दान,दया उपकार से मैं,
मानव में श्रेष्ठ गिना जाऊं।

है राष्ट्र से बढ़कर कुछ भी नहीं,
यह धर्म से भी कहीं ऊपर है।
मैं राष्ट्र सुरक्षा के खातिर,
अपना सर्वस्व लुटा जाऊं।

स्वरचित:-
मनु रमण चेतना
पूर्णियां, बिहार

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