आख़िर हूं मैं कहां-जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

उड़ता है मन,
परिंदों का आसमां ।
खिलता हुआ फूल,
भंवरों का नग़मा।।
ढुंढने चल पड़ा मैं,
खुशियों का जहां।
आख़िर हूं मैं कहां…२.।।
नदियों के किनारे में,
पर्वतों के गुफाओं में।
दिल में कुछ अरमान लिए,
वने-वन पुकारू मैं कहां।।
आखिर हूं मैं कहां…..।।
ज़माने की डोर में,
प्रेम बंधन के छांव में ।
चांद सितारों के रोशनी लिए,
जुगनू बनकर ,
टिमटिमाऊं मैं कहां।।
आख़िर हूं मैं कहां……।।
समंदर के उस पार में,
कश्तियां बनके मंजधार में।
लहरों के संग इठलाता चलूं,
साहिल का ठिकाना कहां।।
आख़िर हूं मैं कहां….।।
संगीत के उस साज में,
धुंधरू के आवाज़ में।
हृदय प्रेम की गीत-गाकर,
मगर ढुंढू मैं कहां।।
आख़िर हूं मैं कहां….।
धरती की सूनापन में,
रुख़सार की चमक –
रूखड़ेपन में ।
सुलगते हुए चिंगारीयों से,
शमा जलाऊं मैं कहां।।
आख़िर हूं मैं कहां……।।


जयकृष्णा पासवान
स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट

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