आजादी – गुड़िया कुमारी

गुलामी की जंजीर तोड़कर हमने आजादी पाई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।

पराधीनता की छाया बनकर दुश्मन घर में आया था,

राष्ट्रभक्ति, समर्पण का पाठ हमने हीं उसे सिखाया था।

तोड़ दीं सारी जंजीरें हमने, दुश्मन ने जो बिछाई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।।

सन् 1857 में छेड़ी, हमने पहली लड़ाई थी,

युवाओं में थे जोश भरे, बूढ़ों ने ली अँगड़ाई थी।

आजादी को कर्त्तव्य समझकर सबने कसम ये खाई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबने मिलकर लड़ी लड़ाई,

आजादी के खातिर न जाने कितनों ने अपनी जान गवाँई।

आजादी था अब कर्म हमारा आजादी ही कमाई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।।

उन वीरों को आज नमन करे जो देश के लिए कुर्बान हुए,

मातृभूमि खातिर जो अमर हुए, बलिदान हुए।

आजादी के महत्ता को वीरों ने हमें बताई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।।

मन,कर्म वचन से हम, भारत को समृद्ध बनाएँगे,

इसकी रक्षा के खातिर हम मर जाँएगे,मिट जाँएगे।

यही शपथ लेकर हमने उस दिन पताका फहराई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।।

भारत की है कितनी क्षमता दुश्मन को हमने बताई थी,

नए जोश और नई जवानी फिर से भारत में आई थी।

गुडिया कुमारी ‘शिक्षिका’
मध्य विद्यालय बाँक
जमालपुर, मुंगेर

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