आज धरती पर आसमां,
वीरान क्यों है।
चांद और सितारे,
भी तो वहीं है।
मगर हवा की सुर्खियां,
इतना परेशान क्यों है।।
हरेक-लम्हों की बेचैनी,
ईंटों के दिवारों में दिखती है।
कोरे कागज़ के पन्नों पर,
सजती और सवरती है।।
क़िस्मत के लकीरों में,
इतना इंतक़ाम क्यों है।
आज धरती पे आसमां,
वीरान क्यों है।।
बहती हुई दरिया आज,
इतना शांत क्यों है।
घटा तो रवानी में,
ख़ामोश पड़े है।।
फिर भी चमकती हुई,
बिजलियों के इतने –
निशान क्यों है।
चांद और सितारे भी,
तो वहीं है।
मगर हवा की सुर्खियां,
इतना परेशान क्यों है।।
बागों की हर वादियां,
इतनी सुनसान क्यों है।
कोयल की बोली जब,
कुहूके ही नहीं ।।
लगता है धड़कनों में,
अब जान कहां है।
पत्तियां भी नरमियों के,
आहें भर रहे।।
फूल भी अपनी खुशबू से,
अनजान क्यों है।
आज धरती पर आसमां,
वीरान क्यों है।।
जयकृष्णा पासवान
स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका