वक्त अभी ठहरने का है,
और समय बहुत परेशान हो- गया है।
मन का अभी सुनिए मत,
दिल अभी लहू-लुहान हो गया है।।
अश्क़ का दरिया अभी,
सुखता ही नहीं ।
गली मोहल्ला और शहर,
सुनसान हो गया है।।
थोड़ी रूकावट में ढ़ल जाने,
की जरूरत है हमें।
बस इस आंधी को सिर्फ,
गुजरने दो ।।
फिर हर सितम का तिलक,
अपनी ललाट पर लगा लेंगे।
हम तो देश के सपूत है,
इसे बचाने में अपनी –
जान भी गवा देंगे।।
इन्कलाब का चोला पहनकर,
तिरंगा लेके हाथ में अभिमान
हो गया है।।
वक्त अभी ठहरने का हैऔर समय बहुत परेशान हो गया है।।
चहकती हुई चिड़ियां – ख़ामोश क्यों है।
बहती हुई फिजाओं में रुकावट क्यों है।।
बाग जैसा घर और फूल की वादियों जैसा आंगन ।
विरान क्यों हो गया है।।
वक्त अभी ठहरने का है
और समय बहुत परेशान हो
गया है।।
जयकृष्णा पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका
उत्कृष्ट एवं उम्दा रचना के लिये बधाई