मुँह में राम दिल मे छुरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो । ।
मानव मन की यह शान नहीं ,
यह दानवता की खाई है ।
मानवता इसमें जरा भी नहीं ,
यह ईर्ष्या की अँगड़ाई है ।
मानव रूप तुम पाए हो ,
न मानवता का अपमान करो ।
मुँह में राम दिल मे छूरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो ।।
क्या लेकर थे आए तुम ,
और क्या लेकर तुम जाओगे ?
ईर्ष्या न करो किसी भी जन से ,
तुम सबको गले लगाओगे ।
खाली कभी न बैठो वन्दे ,
न किसी का बुरा करो ।
मुँह में राम दिल मे छुरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो ।।
छल – कपट न रखो मन मे ,
न धोखा किसी को दिया करो ।
असली रूप दिखाओ जग को ,
कभी छद्मरूप नही धरा करो ।
मानव जनम अति यह दुर्लभ ,।
नित ध्यान हमेशा रखा करो ।
मुँह में राम दिल मे छूरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो ।।
क्रोध और लोभ निशा में ,
न तनिक कभी तुम पड़ा करो ।
मानव हो मानव बनकर तुम ,
रूप दानव का न धरा करो ।
प्रेम परस्पर ही पूजा है ,
निश्छल मन तुम रमा करो ।
मुँह में राम दिल मे छुरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो ।।
धर्म अनेक ; इंसान एक है ,
कभी न नफरत पालो ।
कभी न रखो बैर निज मन मे ,
न कभी दुविधा में डालो ।
मानव होकर तुम मानव बन ,
तुम दया भाव भी रखा करो ।
मुँह में राम दिल में छूरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो ।।
सबमे एक ही आत्मा है ,
और एक ही सबके प्राण हैं ।
कभी न खेलो छद्म युद्ध तुम ,
घट -घट में प्रभु राम हैं ।
दिल मे श्रद्धा भाव लिए ,
नित सुकर्म तुम किया करो ।
मुँह में राम दिल मे छूरी ,
लेकर न कभी जिया करो ।
ऐसा न कभी किया करो ।।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )