इम्तिहान
ललिता अपनी परीक्षा की तैयारी कर रही थी,और साथ ही उसकी सच्ची दोस्त साहिदा उससे कुछ प्रश्न पूछ रही थी, दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ाती थी।
अब सरकार के तरफ़ से सिलेबस जारी हो चुका था। कोई चारा नहीं ,लाचार – बीमार शिक्षकों के लिए।
जगह- जगह बाजार खुल चुके थे, उसका मोल- तोल भी शुरू हो चुका था।
लेकिन सबसे ज्यादा परेशान है ललिता के पिता किशुन जो शिक्षक हैं लेकिन पूरी तरह से नहीं (व्यवस्था की नज़रों में )
अब सरकार का फ़रमान आया है की पूरी तरह चाणक्य बनना है तो घनानंद के तुगलकी फरमानों को सहना होगा।
न जाने कितने इम्तिहान देंगे ललिता के पिता।
बाप,दादा , पोता तक।
कभी तुम भी देकर देखता इम्तिहान!
– विनय विश्वा
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