विधा:-मनहरण घनाक्षरी
कानन से वृक्ष कटे,
शीत भरी छाया हटे,
तप्त हुई वसुंधरा,नीर मत पीजिए।
यत्र-तत्र कूडादान,
चल पड़ा अभियान,
गंदगी से मिले मुक्ति,निर्णय तो लीजिए।
मेघपुष्प सूख रहे,
जीव-जंतु दुःख सहे,
प्रकृति से खेलवाड़,कभी नहीं कीजिए।
छुप गया जलधर,
रुठ गया हलधर,
हर घर तरुवर,उसे नित्य सींचिए।
एस.के.पूनम।
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