कछुए की चाल
धीरे-धीरे चलता कछुआ,
धैर्य-ध्वनि-सा बलता कछुआ।
शांत, सहज, संकल्पी लगता,
मौन मगर हर पलता कछुआ।।
जल-थल दोनों जीवन उसका,
गति में गूढ़ विवेक है जिसका।
छोटा तन, पर ध्यान विशाल,
सद्गुणों का एक रस उसका।।
तन पर कवच, मन में ममता,
धीर बने जब लहरें हँसता।
संकट हो या भीषण आंधी,
कभी न पीछे हटकर बसता।।
सृष्टि-प्रेम का प्रतिरूप यह,
कूर्म रूप का अमूल्य छंद।
संरक्षण का संदेश यह दे,
जीवन-गति में भले हो मंद।।
चलो बचाएँ इसे धरा से,
शैल-सरोवर सबकी काया।
कछुए जैसा बने धरा पर,
संयम, त्याग, तपस्या माया।।
@सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक, उ.म.वि.रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)
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