कड़ाके की ठंड है ,
ठंड बड़ी प्रचंड है ।
शीतलहर जारी है ,
हर पल सब पर भारी है।
यह ठंड सबको सहना है, रजाई में ही रहना है।
गरम पकौड़े खाने हैं ,
यह समय यूं ही बिताने हैं।
चाय कॉफी सबको भाती है, जब-जब ठंड कँपकँपाती है।
आग जलाकर बैठे रहो ,
घर में ही सब डटे रहो।
प्रयास कर संभाल लो ,
यह समय यूं ही निकाल लो।
न पूजा, न पाठ हो ,
न स्नान की, कोई बात हो।
खाते मुँह, थके नहीं ,
समोसे, चाय पर लगे रहो।
दिन हो के रात हो ,
न संग हो ,न साथ हो।
मन मारकर कहना है ,
घर में ही डटे रहना है।
दीपा वर्मा
रा. उ. म. वि.
मुजफ्फरपुर
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