कर्त्तव्य के आलोक पथ पर ,
कुछ दीया मैं भी जला दूँ ।
सज दूँ इसे अवली बनाकर ,
प्रेमपथ में भी सजा दूँ ।
नेह सारे मिल गए ,
कर्त्तव्य के आलोक पथ पर ।
विद्वेष सारे मिट गए ,
सृजन के आलोक पथ पर ।
जीवन हम ऐसे जियें ,
जो अन्य के भी संस्कार जागे ।
काम हम ऐसे करें ,
जो अन्य के भी कुसंस्कार भागे ।
जीवन के पुनीत पथ पर ,
स्वार्थ से दूरी बनायें ।
प्रेम दें दिल से हमेशा ,
फरेब को रसातल मिलायें ।
धोखा न हम कभी दे सकें ,
इसपर सचेष्ट भी रहना पड़ेगा ।
मन ,वचन और कर्म से नित ,
नूतन मार्ग भी गढ़ना पड़ेगा ।
आएँ हम सभी संकल्प लें ,
तन -मन की ऊर्जा नित बढ़ाएं ।
ज्ञान रश्मि की प्रभा से ,
दुःख – दर्द जीवन से घटाएं ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )