कर्म
धर्म का राह कभी सरल नहीं होता,
अधर्म से बड़ा कोई हलाहल नहीं होता
युगों – युगों तक स्मरण करें हर कोई,
यह मार्ग इतना अविरल नहीं होता।
सद्कर्म की पराकाष्ठा हो ऐसी,
अनंत काल की निष्ठा हो जैसी,
फल मिलता है हमारे हर कर्मों का,
हमारे ज़ीवन की भूमिका हो जैसी।
बालि ने स्वीकारा नहीं सुग्रीव का संवाद,
हिरण्यकशिपु नहीं माना बेटे की फ़रियाद,
कुरुवंश का नाश था धर्म से विवाद।
श्रीकृष्ण ने किया धर्मयुद्ध का शंखनाद।
सर्वस्व नाश हुआ सिर्फ अपने कर्म से,
रणक्षेत्र ने प्राण छीना सूर्यपुत्र कर्ण से,
महान योद्धा कर्ण, दिया अधर्म का साथ
सब जीता जा सकता था केवल धर्म से।
राजा सत्यवादी हरिश्चंद्र की गाथा पढ़कर,
अंजुली भर अश्रु से रुह काँप सा जाता है,
उनके सत्कर्मों से बड़ी गहरी सीख मिली,
कर्म के लिए सर्वस्व त्याग दिया जाता है।
आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाए,
कर्म करो सच्चा तो सब संभव हो जाए,
जो मेरे अंतिम यात्रा में साथ-साथ जाए,
कर्म ही हमारे जीवन का सार बन जाए।
नूतन कुमारी (विशिष्ट शिक्षिका)
मध्य विद्यालय चोपड़ा बलुआ
पूर्णियाँ, बिहार
