जिस ओर हम पग धरें ,
सुकर्म सम्मत नीति से ।
फिर हार हो सकती नही ,
चाहे कोई भी छल रीति से ।
प्रयास से पूर्व समर में ,
सोच हो जब सर्वदा ।
बाधा न आती उस राह में ,
जब अंतर्दृष्टि रहती सदा ।
परिवर्तनों का दौर भी ,
कदाचित बाधा डालती ।
जीवन जिधर अभिमुख हुआ ,
भय -त्रास कभी न पालती ।
संभावनाओं के खेल में ,
न विषमता से डरें कभी ।
हर मार्ग पर ; हर दिशा में ,
मुकाबला हम करें सभी ।
पथ ही पथों को जोड़ते,
जीवन नया नित मोड़ते।
संकटों से यदि दो – चार हों ,
फिर भी न राहें छोड़ते ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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